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जानें जाहर पीर के नाम से मुस्लिम समाज क्यों करता है गोगाजी की पूजा, पढ़ें लोकदेवता का पूरा इतिहास





चूरू. आज गोगा नवमी है। जगह जगह गोगा मेड़ी में आज गोगाजी महाराज की पूजा- उपासना होगी।  जिसमें हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी शामिल होंगे। वजह है गोगाजी महाराज की धर्मनिरपेक्ष देवता की छवि। लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं आखिर गोगाजी महाराज हिंदुओं के देवता और मुस्लिमों के जवाहर पीर क्यों कहलाए। तो जानिए क्या है गोगाजी का इतिहास..


गोरखनाथ के प्रसाद से हुआ जन्म

चौहान वंश के शासक जैबर उर्फ जेवर सिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से गोगादेव का जन्म भाद्र महीने की नवमी को विक्रम संवत 1003 में राजस्थान के चूरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ। मान्यता के अनुसार लंबे समय तक संतान नहीं होने पर बाछल नाथ संप्रदाय के गुरू गोरखनाथ  के पास अपनी पीड़ा लेकर गई थी। जिन्होंने बाछल को गूगल फल का प्रसाद दिया। जिसे खाने के बाद वह गर्भवती हुई। गोरखनाथ के आशिवार्द व गूगल फल से जन्म होने पर संतान का नाम गोगा रखा गया। गोगाजी बचपन से ही वीर व साहसी होने के साथ गुरू गोरखनाथ के शिष्य होने की वजह से तपोनिष्ठ थे। उन्हें सांपों का जहर खत्म करने की सिद्धि हासिल हो गई थी। 


 नोहर में है समाधि स्थल


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गोगाजी महाराज का समाधि स्थल हनुमानगढ़ के नोहर में है। जहां उन्होंने गुरु गोरखनाथ के साथ तपस्या की थी। आज भी दोनों के समाधि स्थल पर हजारों हिंदू- मुस्लिम श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचते हैं। हर साल यहां गोगा नवमी पर विशाल मेले का आयोजन भी होता है। 


धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए गोगाजी 


                   


इतिहासकारों के अनुसार चौहान वंश के गोगाजी ने अरब आक्रांताओं से 11 बार लोहा लेकर उन्हें खदेड़ दिया था। वहीं, अफगानिस्तान के शाह द्वारा राजस्थान से लूटी गई हजारों गायों को भी छुड़वाया। गोगाजी के डर से ही अरब आक्रमणकारियों ने  गाय व धन की लूट बंद कर दी थी। इतिहासकारों के अनुसार जब महमूद गजनवी अफगानिस्तान सेे सोमनाथ मंदिर पर हमला करने के लिए निकला तो देसी राजाओं की अड़चन हटाने के लिए वह उन्हें सोना- जवाहरात देकर खुश करता हुआ जा रहा था। इसी बीच जब उसने गोगागढ़ में गोगाजी के सामने भेंट की पेशकश रखी, तो गोगाजी ने उसे ठुकरा दिया और धर्म की रक्षा के लिए गजनी का रास्ता रोककर घमासान युद्ध किया। जिसमें गोगाजी के 1100 सैनिक बड़ी बहादुरी से युद्ध करते हुए शहीद हो गए। कहते हैं कि युद्ध में घायल अवस्था में भी उन्होंने सांपों का आह्वान किया था। जिस पर हजारों सांपों ने आकर भी गजनवी के सैनिकों पर हमला कर सेना को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। लेकिन, जैसे- तैसे गजनवी की सेना यहां से पार पाने में सफल हो गई। युत्र में गोगाजी का जिस स्थान पर शरीर गिरा, उसे गोगामेड़ी कहते हैं। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल और कुछ निशानियां मौजूद है।


इसलिये पूजते हैं मुस्लिम

गोगादेव को मुस्लिम भी शीश नवाते हैं। इसकी वजय कायमखानी मुस्लिमों का इतिहास बताया जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक गोगाजी के वंश के मोटाराम चौहान पर हिसार के राजा सैयद हैदर ने संवत 1440 में हमला कर  उनके बेटे कर्मसी (कर्मचन्द) को अगवा कर लिया था। जिसकी वीरता देखकर सैयद हैदर ने बाद में कायम खां नाम रखकर उन्हें अपनी  गद्दी सौंप दी। इन्हीं कायम खां के वंशज बाद में कायमखानी मुस्लिम कहलाये। जो खुद को चौहान वंशी मानते हुए गोगाजी में भी आस्थावान रहे। इसके अलावा  धर्म निरपेक्ष सोच की वजह से भी कई मुस्लिम वंश गोगाजी में आस्था रखने लगे। जिसका क्रम आज भी लगातार जारी है। पीर शब्द से संबोधित करते हुए गोगाजी को गोगापीर कहते हुए मुस्लिम आज भी गोगामेड़ी पर माथा टेक मन्नत मांगते हैं। 



सर्पदंश से मुक्ति पूजा

सांपों के देवता के रूप में पूजे जाने वाले गोगाजी को गुग्गा वीर, जार वीर, राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारा जाता है। सर्पदंश से मुक्ति के लिए लोग आज भी गोगा मेड़ी पहुंचकर पूजा करते हैं। पत्थर या लकडी पर सांप की तस्वीर उकेर कर घरों में भी गोगाजी की पूजा की जाती है। 


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