भगवान के भक्त राजाओं में श्रीकुलशेखरजी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। प्राचीन समय में ये केरल के राजा व भगवान राम के उपासक थे। जिन्होंने राम कथा सुनकर ही भगवान राम के लिए सेना सजा सजा ली थी। आइए आज आपको उनकी कथा बताते हैं।
कुलशेखरजी की कथा
श्रीकुलशेखरजी कोल्लिनगर केरल के राजा थे। राजा होने पर भी उनकी विषयों में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। वे सदा भगवद्भाव में लीन रहने लगे। उनका सारा समय सत्संग,कीर्तन,भजन,ध्यान और भगवान की लीला सुनने में बीतता। उनके इष्टदेव भगवान श्रीराम थे। वे दास भाव से उनकी सेवा व पूजा करते थे। एक दिन वे बड़े प्रेम के साथ श्रीरामायण की कथा सुन रहे थे। प्रंसग यह था कि भगवान श्रीराम सीताजी की रक्षा के लिये लक्ष्मण को नियुक्त कर खुद अकेले खर-दूषण की विशाल सेना से युद्व करने के लिये उन के सामने जा रहे हैं। पंडित जी कह रहे थे कि धर्मात्मा श्रीराम अकेले चौदह हजार राक्षसों से युद्व करने जा रहे हैं। इस युद्व का परीणाम क्या होगा? कुलशेखरजी कथा सुनने में इतने मग्न हो रहे थे कि वे भूल गए कि यहां रामायण की कथा हो रही है। उन्होंने समझा कि भगवान वास्तव में खर-दूषण की सेना के साथ अकेले युद्व करने जा रहे हैं। यह बात उन्हें कैसे सहन होती। वे तुरंत कथा में से उठ खड़े हुए। उन्होने उसी समय शंख बजाकर अपनी सारी सेना बुला ली। और सेनापति को आज्ञा दी कि चलो हम लोग श्रीराम की सहायता के लिये राक्षसों से युद्व करने चलें। ज्यों ही वे वहां से जाने के लिये तैयार हुए, उन्होंने पण्डितजी के मुंह से सुना कि श्रीराम ने अकेले ही खर-दूषण सहित सारी राक्षस सेना को मार दिया। तब कुलशेखरजी को शान्ति मिली और उन्होंने सेना को लौट जाने का आदेश दिया।
श्रीकुलशेखरजी कई वर्षो तक श्रीरंगक्षेत्र में रहे। उन्होंने वहां रहकर मुकुन्दमाला नामक संस्कृत का एक बहुत सुन्दर स्तोत्र -ग्रन्थ रचा। इसके बाद ये तिरूपति में रहने लगे और वहां रहकर इन्होंने बड़े सुन्दर भक्तिरस से भरे हुए पदों की रचना की। इन्होंने मथुरा,वृंदावन,अयोध्या आदि कई तीर्थ स्थलों की यात्रा की थी। श्रीकृष्ण तथा श्रीराम की लीलाओं पर भी अनेक पद रचे।
श्रीकुलशेखरजी कई वर्षो तक श्रीरंगक्षेत्र में रहे। उन्होंने वहां रहकर मुकुन्दमाला नामक संस्कृत का एक बहुत सुन्दर स्तोत्र -ग्रन्थ रचा। इसके बाद ये तिरूपति में रहने लगे और वहां रहकर इन्होंने बड़े सुन्दर भक्तिरस से भरे हुए पदों की रचना की। इन्होंने मथुरा,वृंदावन,अयोध्या आदि कई तीर्थ स्थलों की यात्रा की थी। श्रीकृष्ण तथा श्रीराम की लीलाओं पर भी अनेक पद रचे।
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