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भक्त कथा: जना बाई के साथ चक्की पीसते थे भगवान, धोते थे कपड़े


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(sant Jana bai Story) भगवान सिर्फ प्रेम और भाव के भूखे हैं। उनके प्रेम में जाति-पाति, विद्या -बुद्धि, धन- ऐश्वर्य, स्त्री-पुरुष, पंडित- मूर्ख, राजा- रंक व ब्राह्मण- चांडाल का भेद कोई महत्व नहीं रखा। भक्त जना बाई (bhakt jana bai)की भक्ति उसी का उदाहरण है। जो महाराष्ट्र के प्रमुख संत श्रीनामदेव (bhakt namdev) जी के घर की  नौकरानी थी। घर में झाड़ू करने व बर्तन- कपड़े धोने जैसे काम करती। नामदेवजी के घर में होने वाली सत्संगति और भगवद् चर्चा के प्रभाव से उनमें भी भगवत भक्ति उदित हो गई और वो भी भगवान वि_लनाथ का निरंतर स्मरण करने लगी। एक दिन एकादशी के रात्रि जागरण में रातभर झूमते रहने पर अगले दिन सुबह घर जाने पर उसकी आंख लग गई। जो देर से खुलने पर उसे नामदेवजी के घर के काम में देरी होने का आभास हुआ। जल्दी से उठकर वह काम के लिए उनके घर पर पहुंची और जल्दी जल्दी काम करने लगी। इसी बीच कपड़े धोने के लिए जब जनाबाई चंद्रभागा नदी किनारे पहुंची तो कोई काम याद आने पर वह कपड़े छोड़ वापस घर की तरफ दौडऩे लगी। इसी बीच एक वृद्धा ने रास्ते में उसका हाथ पकड़कर हड़बड़ी का कारण पूछा। इस पर उसने देरी होने की सारी कथा बता दी। यह सुनकर वृद्धा ने जना बाई को कहा कि वह घर का काम आराम से कर आए, वह उसके कपड़े धो देगी। वृद्धा के स्नेहिल भाव व मोहनी वाणी से मंत्रमुग्ध हुई जना बाई इसके बाद घर चली गई। वापस आकर देखा तो सारे कपड़े धुले हुए मिले। इसके बाद वृद्धा जना बाई को कपड़े संभलाकर जाने लगी। इसी बीच जना बाई के मन में वृद्धा का परिचय जानने की जिज्ञासा हुई तो वह पूछने के लिए जैसे ही मुड़ी तो वृद्धा वहां से गायब मिली। इधर- उधर ढूंढने पर भी वह नहीं मिली तो जना बाई ने सारी कथा घर जाकर श्रीनामदेवजी को बताई। जिसे सुनकर श्रीनामदेव जी सब समझ गए और बोले कि जना बाई तू धन्य है जिसके कपड़े धोने के लिए भगवान खुद वृद्धा के रूप में आए। यह सुनते ही जनाबाई प्रेम से रोने लगी और भगवान को कष्ट देने के लिए अपने को कोसने लगी। वहां बैठा सारा संत समाज भी आनंद से पुलकित हो गया। कहा जाता है इसके बाद भगवान के प्रति जनाबाई का प्रेम बहुत ही बढ़ गया था। भगवान भी समय-समय पर उसे दर्शन देकर कृतार्थ करने लगे।  जनाबाई घर का काम करते हुए अभंग गाया करती थी। जो गाते- गाते जब वह भाव विभोर होकर सुध बुध भूल जाती तो खुद भगवान उसके बदले कभी चक्की से आटा पीसते तो कभी कपड़े धोने व झाड़ू- पौंछे का काम करते। महाराष्ट्र कवियों ने 'जनि संगे दलिले' यानी 'जना के साथ चक्की पीसते थे' ऐसा गाया है। नामदेवजी (Sant namdevji)के साथ जनाबाई का कोई पारलौकिक सम्बन्ध था। संवत 1407 में जब नामदेवजी ने समाधि ली। उसी दिन कीर्तन करती हुई जनाबाई भी विठ्ठल भगवान में विलीन हो गई।

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जना बाई के चमत्कार

एक दिन भगवान वि_लनाथ के गले का रत्न-पदक चोरी हो गया। सबसे अधिक आने- जाने के कारण मंदिर के पुजारियों को जनाबाई पर ही संदेह हुआ। जनाबाई के भगवान की सौगंध खाने पर भी लोगों को विश्वास नहीं हुआ। सूली पर चढ़ाने के लिए लोगों की भीड़ उसे चन्द्रभागा नदी  तट पर ले गई। जनाबाई विकल होकर 'वि_ल-वि_लÓ पुकारने लगी। इस पर देखते-ही-देखते सूली पिघलने लगी और कुछ देर में ही वह पानी हो गयी। तब लोगों ने जनाबाई के सामने सिर झुका दिया। इसी तरह एक बार कबीरदासजी जनाबाई का दर्शन करने पंढरपुर गए। उन्होंने वहां जनाबाई को गोबर के उपलों के लिए किसी दूसरी महिला से झगड़ते देखा। यह देख कबीरदासजी ने सोचा कि हम तो परम भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उनका दर्शन करने आए हैं और ये गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही हैं। उन्होंने जनाबाई से पूछा-आपको अपने उपलों की कोई पहचान है। जनाबाई ने उत्तर दिया- हां, जिन उपलों से विट्ठल-विट्ठल की ध्वनि निकलती हो, वे हमारे हैं। कहते हैं कि जब कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास ले जाकर देखा तो उन्हें 'विट्ठल-विट्ठल की ध्वनि सुनाई दी। जिसे सुन वह भी जनाबाई की भक्ति के प्रेमी हो गए। 


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