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पितृ पक्ष: श्राद्ध करने से परिवार में ये होता है लाभ, नहीं करने पर भोगने पड़ते हैं ये नुकसान

 पितृ पक्ष (Pitra _Paksh) यानी श्राद्ध (Shradh)काल शुरू हो गया है। हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध पक्ष शुरू हो जाता है। जो अमावस्या तक 15 दिन का होता है। यह समय अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पण व तर्पण का समय होता है। जिसमें पितरों को संतुष्ट कर व्यक्ति उनका आशिर्वाद प्राप्त करता है। लेकिन, यदि मनुष्य यही श्राद्ध नहीं करने तो उसे परिवार सहित भयंकर दुख भोगना पड़ता है। आज हम आपको शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने के लाभ (advantages of shradh) व नहीं करने के नुकसान (disadvantages of shradh) बताने जा रहे हैं। 



श्राद्ध करने के लाभ (Why should we do Shradh?) (Benefits of performing Shradh) (श्राद्ध क्यों करना चाहिए)

यम स्मृति के अनुसार-

 आयु: पुत्रान् यश: स्वर्गं कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम।

पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्रुयात पितृपूजनात।।

यानी श्राद्ध करने पर अनुष्ठाता की आयु बढ़ती है। पुत्र प्राप्ति से वंश परंपरा बढ़ती है। यश, स्वर्ग, कीर्ती, स्वास्थ्य, बल-पौरुष बढ़ता है। धन धान्य का अंबार लग जाता है। 

 ब्रम्हापुराण के अनुसार-


'एवं विधानत: श्राद्धं कृत्वा स्वविभवोचितम्। 

आब्रम्हास्तम्बपर्यन्तं जगत् प्रीणाति मानव:।'

 यानी जो व्यक्ति अपनी संपति के अनुसार शास्त्र की बतायी विधि से श्राद्ध करता है, वह केवल अपने सगे- संबंधियों को ही नहीं सम्पूर्ण संसार को तृप्त कर देता है। 


वाराहपुराण के अनुसार तृप्ति ही नहीं उस व्यक्ति द्वारा किये श्राद्ध से जगत के पूज्यों की पूजा हो जाती है। तीनों अग्नि, तीनों लोक, तीनों देव, चारों वेद, चारों आश्रम, चारों वर्ण, चारों पुरुषार्थ, चारों दिशाएं, चारों युग और वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्र, अनिरुद्ध- रूप चतुव्र्यूह भी पूजित हो जाते हैं। 


तेषां त्रय: पूजिताच्श्र भविष्यन्ति तथाग्रय:।

पूजिाताच्श्र त्रयो देवा ब्रम्हाविष्णुमहेश्वरा:।।

पूजिताच्श्र भविष्यन्ति चतुरात्मा तथाप्यहम।। 



कूर्मपुराण के अनुसार-


योनेन विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानसं:।

अपेतकल्मषो नित्यां याति नावर्तते पुन:।।

यानी, श्राद्ध सांसारिक जीवन को सुखमय बनाता है। परलोक सुधारता है और अंत में मुक्ति प्रदान करता है।



इस तरह श्राद्ध से पूर्वजों को तृप्ति के साथ सभी पूज्यों की पूजा भी हो जाती है। इसलिए शास्त्रों ने श्राद्ध से बढ़कर को श्रेष्ठ कार्य नहीं बताया है। 

श्राद्धात परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाह्रतम।

तस्मात सर्वप्रयत्नेन श्राद्धं कुर्याद् विचक्षण:।। (सुमन्तु)


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श्राद्ध नहीं करने से हानि   (Disadvantages of not performing Shradh)


 शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध नहीं करने से काफी हानि होती है। शास्त्रों के अनुसार मृत व्यक्ति का अपने परिवार व सगे संबंधियों से गहरा लगाव होता है। उनके दिए बिना उसे न तो अन्न मिल सकता है और न ही पानी।  जब मृत व्यक्ति अपनी महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता है तो अन्न व पानी कैसे ले जा सकेगा? इस समय उसके सगे संबंधी जो कुछ देते हैं वहीं उसे मिलता है। इसलिए शास्त्र ने मरने के बाद सबसे पहले उसे स्नान कराकर वस्त्र आदि पहनाकर शव उठाने से पहले ही पिंड पानी के रूप में खाने पीने की व्यवस्था का विधान किया है। रोना-धोना तक  इसलिए मना किया है क्योंकि दाहकर्म के पहले जो कुछ उसके सगे संबंधी देते हैं वही उसे खाना पीना पड़ता है। ऐसे में यदि पिंड पानी न देकर यदि आंसू देंगे तो मृतात्मा को वही पीना पड़ता है। परलोक पहुंचने पर भी उसके लिए वहां उसके लिए अन्न पानी नहीं होता। यदि सगे संबंधी कुछ न दें तो उसे भूखा- प्यासा ही रहना होता है। इससे वह कष्टों को सहता हुआ अपने पुत्रों- परिजनों को ही शाप देता है। 

ब्रम्हापुराण के अनुसार- 


'श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।'

यानी मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने संबंधियों का रक्त चूसने लगता है। 

नागर खंड के अनुसार

'पितरस्तस्य शापं दत्त्वा प्रयान्ति च। ' यानी पितृ  शाप भी देते हैं।


हारीत स्मृति के अनुसार

न तत्र वीरा जायन्ते नारोगा न शतायुष:।

न च श्रेयो<धिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम।।


विष्णु स्मृति के अनुसार श्राद्धमेनं न कुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते।


श्राद्ध नहीं करने वाले परिवार को जीवन भर कष्ट सहने पड़ते हैं। परिवार में पुत्र उत्पन्न नहीं होता। सदस्यों की आयु कम हो जाती है। वंश, धर्म, धन-धान्य, सुख- समृद्धि सब धीरे धीरे नष्ट हो जाती है और श्राद्ध नहीं करने वाला अन्त में नरक को प्राप्त होता है।


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