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नवरात्रि में पहले दिन से है कन्या पूजन का विधान, ये कहती है देवी भागवत पुराण

                                       

हिंदू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है। वर्ष में दो बार आने वाले ये नवरात्र शक्ति की उपासना का समय माना जाता है। जिसमें 9 दिन तक मां दुर्गा के 9 अलग- अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र में व्रत के पारण यानी समाप्ति के दिन सप्तमी से लेकर नवमी तक कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। आज हम आपको उसी कन्या पूजन से जुड़ी कथा, पूजन के लिए कन्याओं की उम्र व कन्या पूजन की विधि बताने जा रहे हैं। 

पहले दिन से कराएं कन्याओं केा भोजन

देवी भागवत पुराण में ऋषि व्यास द्वारा राजा जनमेजय को कन्या पूजन का महत्व बताया गया है। जिसमें व्यास कहते हैं कि कन्या पूजन नवरात्रि के पहले दिन से शुरू करना चाहिए। इसमें पहले दिन एक कन्या की ही पूजा कर भोजन करवाएं। फिर प्रतिदिन एक कन्या बढ़ाते हुए 9वें दिन नौ कन्यााओं का पूजन करना चाहिए। जिसमें अपने धन के अनुसार पूजन में खर्च करना चाहिए। 

एक वर्ष की कन्या को नहीं करायें भोजन

व्यास ऋषि के अनुसार पूजन एक वर्ष की कन्या का नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या स्वाद व गंध को नहीं पहचानती है। ऐसे में 2 वर्ष से 10 वर्ष तक की कन्याओं को हो भोजन कराना चाहिए। 

कन्या की उम्र के हिसाब से होती है देवी की पूजा

देवी भागवत पुराण के अनुसार कन्या की उम्र के हिसाब से ही उनमें देवी रूप की प्रधानता होती है। व्यासजी के अनुसार  3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी ,5 वर्ष वाली रोहिणी, 6 वर्ष वाली कालिका, 7 वर्ष वाली चंडिका, 8 वर्ष वाली को शांभवी, 9 वर्ष की कन्या को दुर्गा और 10 वर्षीय कन्या को समुद्रा कहा गया है। इससे ऊपर अवस्था वाली कन्या की पूजा नहीं करनी चाहिए।

कन्या पूजन का फल

व्यास ऋषि के अनुसार कन्या की उम्र के हिसाब से उनके नामों से विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। उन्होंने कन्याओं के पूजन का फल भी बतलाया है कि दुख और दारिद्रता दूर करने के लिए कुमारी की पूजा करनी चाहिए। इस पूजन से शत्रुओं का शमन और धन, आयु और बल की वृद्धि होती है। भगवती त्रिमूर्ति की पूजा से त्रिवर्ग यानी धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि मिलती है। साथ ही धन-धान्य का आगमन और वंश का संवर्धन होता है। जिस राजा को विद्या, विजय, राज्य और सुख पाने की अभिलाषा हो वह संपूर्ण कामना पूर्ण करने वाली भगवती कल्याणी की निरंतर पूजा करें। शत्रु का शमन करने के लिए भगवती काली का और ऐश्वर्य व धन की पूर्ति के लिए भगवती चंडिका का पूजन करना चाहिए। किसी को मोहित करने दुख व दारिद्रता दूर करने तथा संग्राम में विजय पाने के लिए भगवती शांभवी, कठिन कार्य को सिद्ध करते समय अथवा दुष्ट शत्रु का संघार करने के लिए भगवती दुर्गा की पूजा का विधान है। जिनकी भक्ति पूर्वक पूजा करने से पारलौकिक सुख भी सुलभ होता है। इसी तरह मनोरथ की सफलता के लिए भगवती सुभद्रा व रोग नाश के लिए देवी रोहिणी की पूजा करनी चाहिए। 


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