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चैत्र कृष्ण पक्ष की पाप मोचनी एकादशी 18 मार्च को, ये है कथा व व्रत विधि

चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है। वर्ष 2023 में यह एकादशी 18 मार्च को है। (papmochani ekadashi 2023 ) इस व्रत को करने से सारे पाप नष्ट होकर एक हजार गोदान का फल मिलने की पौराणिक मान्यता है। आज हम आपको इस व्रत की विधि व कथा बताने जा रहे हैं।



एकादशी व्रत की विधि ( chetra krishna ekadashi vrat vidhi)

पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी व्रत की विधि बताई थी। जिसमें बताया कि एकादशी व्रत करने वाले श्रद्धालु को दशमी की शाम को दातुन कर रात को भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी को सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेकर नदी, सरोवर, बावड़ी, कुएं आदि ने स्नान करना चाहिए। स्नान से पहले मिट्टी या चंदन लगाना चाहिए। स्नान के बाद धूप, दीप व भोग लगाकर भगवान का पूजन करना चाहिए। अन्न ग्रहण किए बिना निराहार रहते हुए दिनभर भजन-सत्संग करना चाहिए। रात को दीप दान करना चाहिए। स्त्री प्रसंग नहीं करते हुए रात को भी भक्ति भाव से भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। इस दिन श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपनी गलतियों की क्षमा भी मांगनी चाहिए। व्रती को पापी, चोर, पाखंडी, निंदक, पर स्त्रीगमन करने वालों से बात नहीं करनी चाहिए। 

पाप मोचनी एकादशी व्रत की कथा (pap mochini ekadashi vrat katha/ chetra krishna ekadashi vrat katha)

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे भगवान! मैंने फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का माहात्म्य सुना। अब आप चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बताइये। इस एकादशी का नाम, व्रत करने की विधि व पूजन के बारे में विस्तारपूर्वक कहिये। 

श्री भगवान बोले-हे राजन!  एक समय मान्धाता ने लोमश ऋषि से ऐसा ही प्रश्न पूछा था। तब लोमश ऋषि ने उत्तर दिया कि हे राजन! चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है।

प्राचीन समय में एक चैत्ररथ वन में अप्सरायें वास करती थीं। वहां हर समय बसंत रहता था। उस वन में एक मेधावी नामक मुनि तपस्या करते थे। वे शिव भक्त थे। एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा उनको मोहित करने के लिए सितार बजाकर मधुर गाना गाने लगी। उस समय भगवन शिव के शत्रु कामदेव भी शिवभक्त मेधावी मुनि को जीतने के लिए तैयार हुए। कामदेव ने उस समय सुंदर अप्सरा के भ्रू को धनुष्य और कटाक्ष को प्रत्यंचा बनाया। उसके नेत्रों को संकेत और कूचों को कुरी बनाया। फिर मंजूघोषा अप्सरा को सेनापति बनाकर वह मेधावी को जीतने को तैयार हुआ। इस समय मेधावी मुनि भी युवा तथा हष्ट-पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दंड धारण कर रखा था। उन मुनि को देखकर मंजूघोषा ने  धीरे-धीरे मधुर वाणी से वीणा पर गाना शुरू किया। मेधावी मुनि भी मंजूघोषा के मधुर गान और उसके सौंदर्य पर मोहित हो गए। वह अप्सरा उन मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर आलिंगन करने लगी। मुनि भी उसके सौंदर्य पर मोहित होकर शिव रहस्य को भूल गए और काम के वशीभूत होने के कारण उन्हें दिन-रात का कुछ भी ध्यान नहीं रहा। 

एक दिन मंजूघोषा मुनि से बोली कि है मुनि अब मुझे बहुत समय हो गया है। आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए। अप्सरा के ऐसे वचनों को सुनकर मुनि बोले, हे सुंदरी तू तो आज संध्या को ही आई है। अभी प्रातः काल तक ठहरो। मुनि के वचनों को सुनकर वह उनके साथ फिर रमण करने लगी। बहुत समय बीतने पर जब मंजुघोषा ने फिर स्वर्ग जाने की इच्छा जताई तो मुनि ने फिर से जाने से मना कर दिया। तब अप्सरा बोली कि है मुनि आपकी रात्रि तो बहुत लंबी है। अब आप सोचिए कि मुझे आपके पास आए कितना समय हो गया। उस अप्सरा के वचनों को सुनकर मुनि को ज्ञान प्राप्त हो गया। और जब उन्होंने रमण करने का समय का पता किया तो वह 59 साल 7 महीने और 3 दिन निकला। तब मुनि ने उस अप्सरा को काल का रूप समझा। महान क्रोधित होकर उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। 

मुनि के शाप से वह अप्सरा पिशाचिनी हो गई। तब वह दीन वचन बोली कि है मुनि क्रोध त्याग कर मुझ पर प्रसन्न होइये और मुझे श्राप से मुक्त कीजिये। तब मुनि कुछ शांत हुए और उन्होंने पिशाच योनी से मुक्ति के लिए उसे चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी करने की बात कही। इस प्रकार मुनि ने उसको व्रत की समस्त विधि भी बतला दी। 

इसके बाद मेधावी ऋषि अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गए। अपने पुत्र को देखकर च्यवन ऋषि बोले पुत्र तूने यह क्या किया। तेरे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। मेधावी बोले, है पिताजी मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। अब आप उसके छूटने का कोई उपाय बतलाइए। तब च्यवन ऋषि बोले हे तात! तुम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का विधि तथा भक्तिपूर्वक व्रत करो। पिता के वचन सुनकर मेधावी ऋषि ने पापमोचनी एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से अपने सारे पापों से छुटकारा प्राप्त किया। उधर, मंजूघोषा अप्सरा भी पापमोचनी एकादशी के व्रत से पिशाचिनी की देह से छूटकर अपने सुंदर रूप में स्वर्ग लोक चली गई। 

लोमश ऋषि बाले, हे राजन्! इस पापमोचनी एकादशी के प्रभाव से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी कथा के श्रवण व पढ़ने से एक हजार गोदान करने का फल मिलता है। इस व्रत करने से ब्रह्म हत्या व परस्त्री गमन करने वाले आदि के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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