दिवाली मनाने की एक नहीं कई है वजह, जानें क्यों अहम है ये दिन
पांच दिवसीय दीपोत्सव (diwali) की शुरुआत धन तेरस (dhantaras) से होती है। इस दिन यम देवता व धनवंतरी का पूजन किया जाता है। यम (yamraj) पूजन के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात को महिलाएं दीपक में तेल डालकर 4 बत्तियां जलाती है और जल ,रोटी, चावल व गुड़ आदि चढ़ाकर दीपक जलाकर यमराज की पूजा करती है। इस दिन धनवंतरी के पूजन का भी विशेष महत्व है। धनतेरस के दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। चांदी के बर्तन खरीदने से अधिक पुण्य मिलता है। इस दिन हल से जुड़ी हुई मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डुबोकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुमकुम लगाना चाहिए। कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावली ,कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर 3 दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी तथा अमावस्या की संध्या को जलती हुई लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
धनतेरस की कथा (dhantaras ki katha) (Why is Dhanteras celebrated?)
एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया कि क्या प्राणियों के प्राण लेते समय तुम्हें किसी पर दया आती है? यह सुनकर यमदूत संकोच में पड़कर बोले नहीं महाराज, हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया भाव से क्या मतलब। यमराज ने फिर प्रश्न किया संकोच मत करो और यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजता है तो निडर होकर कह डालो। तब यमदूत ने कहा एक घटना ऐसी घटी है जब हमारा हृदय कांप गया। हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया था। जो जंगल में अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। वहां के शासक हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के 4 दिन बाद मर जाएगा। इस पर राजा हंस के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उसे स्त्रियों की छाया से भी दूर रखा गया। किंतु विधि का विधान तो अमिट होता है। संयोगवश एक दिन किसी राजा की राजकुमारी यमुना के तट पर पहुंच गई और ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया कि राजकुमार मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस नव विवाहिता का करुणा भरा विलाप सुनकर हमारा ह्रदय कांप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी ना देखी थी। उनका रूप रति व कामदेव से कम नहीं था। उस युवक को काल ग्रस्त करते समय हमारे आंसू नहीं थम पाए थे। यह सुन यमराज ने द्रवित होकर कहा कि क्या किया जाए। विधि के विधान की मर्यादा के लिए ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ता है। तब दूत के पूछने पर यमराज ने बचने का उपाय बताते हुए कहा धनतेरस के दिन विधिवत पूजन एवं दीप दान करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जहां जहां जिस जिस घर में यह पूजन होता है वहां अकाल मृत्यु का भय पास तक नहीं भटकता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धनवंतरी पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन हुआ।
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