google-site-verification: googleaeb31003b33f7142.html google-site-verification=Xv40uOZ979n4BNmsBw5B2vPl5LCHtrZ-5MILlPJO6Uo google-site-verification=Xv40uOZ979n4BNmsBw5B2vPl5LCHtrZ-5MILlPJO6Uo Navratri Special: राजस्थान की इस देवी मां के सामने औरंगजेब ने मानी थी हार, अखंड ज्योत के लिए भिजवाया था तेल व घी

Navratri Special: राजस्थान की इस देवी मां के सामने औरंगजेब ने मानी थी हार, अखंड ज्योत के लिए भिजवाया था तेल व घी


जयपुर। औरंगजेब को इतिहास में आक्रांता के रूप में जाना जाता है। जिसने देश में खूब मंदिरों को तोड़ा। लेकिन, राजस्थान का एक मंदिर ऐसा भी है जहां उसने देवी मां के चमत्कार के सामने घुटने टेक दिए थे। यही नहीं वह मां से इतना प्रभावित हुआ कि मंदिर में अखंड दीये के लिए दिल्ली दरबार से तेल भी भेजने लगा। जी, हां हम बात कर रहे हैं सीकर जिले में स्थित Jeenmata Temple की। जो सीकर शहर से 30 किलोमीटर व Khatushyamji से  26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

भक्त कथा: जना बाई के साथ चक्की पीसते थे भगवान, नदी के घाट पर धोए थे कपड़े
 

जयंती से बनी जीणमाता

Jeenmata का वास्तविक नाम जयंती था। जो भाई हर्ष से नाराज होकर तपस्वी बन गई थी। कथा के अनुसार जयंती अपने भाई से बहुत स्नेह करती थी। एक दिन जब वह भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई तो दोनों में इस बात को लेकर चर्चा हो गई कि हर्ष किसे ज्यादा स्नेह करता है। तब तय हुआ कि पानी लेकर जाते समय जिसका घड़ा हर्ष पहले सिर से उतारेगा उसे ही वह ज्यादा प्रेम करता है। इसके बाद दोनों जब घर पहुंची तो हर्ष ने भाभी का घड़ा पहले उतार दिया। जिससे जयंती नाराज हो गई और हर्ष की पहाडिय़ों में तपस्या करने लगी। तपस्या से उन्होंने दुर्गात्व प्राप्त कर लिया। वहीं, भाई ने भी साथ तपस्या कर भैरूं का रूप प्राप्त कर लिया। तब से दोनों भाई बहन यहां जीणमाता व हर्ष भैरूं के रूप में पूजे जाते हैं। जीण माता शेखावाटी के यादव, पंडित, राजपूत, अग्रवाल, जांगिड़ , कायस्थ और मीणा सहित कई समाजों की कुलदेवी हैं। जीण माता के मंदिर में बच्चों मुंडन व गठजोड़े की जात के लिए भारी तादाद में भक्तगण आते हैं।

जानें कौन थे गुर्जर समाज के अराध्य देव भगवान देवनारायण
जानें जाहर पीर के नाम से मुस्लिम समाज क्यों करता है गोगाजी की पूजा, पढ़ें लोकदेवता का पूरा इतिहास

 मंदिर को तोडऩा चाहता था मुगल सम्राट औरंगजेब

मान्यता के अनुसार मंदिरों को नष्ट करता हुआ मुगल सम्राट aurangzeb सीकर भी आया था। यहां उसने जीण माता का मंदिर तोडऩा चाहा। लेकिन इसी समय उसके सैनिकों पर माता ने भंवरे छोड़ दिए। जिन्होंने औरंगजेब की सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। बाद में औरंगजेब ने जीणमाता से अपनी गलती मानी और माता की अखंड ज्योत जलाने का वचन दिया। इसके बाद से यहां दिल्ली दरबार से तेल व घी आने की परंपरा भी शुरू हुई। मंदिर में ये अखंड दीपक अब भी जलता है।

खाटूश्यामजी से 26 किलोमीटर दूर है जीणमात मंदिर

जीणमाता मंदिर  प्रसिद्घ तीर्थ स्थल खाटूश्याम जी मंदिर से 26 किलोमीटर दूर है। यही वजह है कि खाटूश्यामजी आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु जीणमाता के दर्शनों के लिए भी जाते हैं।

Post a Comment

0 Comments