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भक्त कथा: ज्ञानदेवजी के कहने पर भैंसा पढ़ने लगा था वेद पाठ





भारत में महान संतों की कई कथाएं प्रचलित है। उनमें ही एक संत ज्ञानदेवजी हैं। जो भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार उन्होंने अपनी भक्ति के प्रभाव से भैंस से भी वेद पाठ करवा दिए थे। आइए आज उन्हीं ज्ञानदेवजी की कथा आपको बताते हैं।

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संत ज्ञानदेवजी की कथा (sant gyan dev story)
                                
भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार श्री ज्ञानदेवजी श्रीविष्णुस्वामी सम्प्रदाय के प्रमुख सन्त थे। इनके पिताजी ने गृहस्थाश्रम को त्याग कर संन्यास ले लिया था और खुद को अविवाहित बताकर वे गुरु के पास रहने लगे। जब उनकी पत्नी को पता चला तो वह उन्हें लेने गुरु के पास चली गई। जब गुरु को उनके विवाहित होने का पता चला तो उन्होंने उन्हें पत्नी के साथ वापस घर लौटा दिया।  पर अब परिवार व समाज के लोगों ने नाराज होकर उन्हें घर व समाज से बाहर निकाल दिया। लेकिन, इसके इतने पर भी वे दुखी नहीं हुए। गृहस्थाश्रम में प्रवेश को गुरु की आज्ञा मानकर वे प्रसन्न मन से रहने लगे। इसके बाद उनके तीन पुत्र हुए। जिनमें बड़े ज्ञानदेवजी थे।

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 इनकी श्रीकृष्ण भगवान में सच्ची प्रीति थी। जब वह पढ़ने के लिये गुरुकुल गये तो उनको किसी ने वेद नही पढ़ाया। सब यही कहने लगे कि तुम संन्यासी के पुत्र हो,तुम्हारी जाति नष्ट हो गयी। फिर ब्राह्मण विद्वानों की एक सभा हुई। उसमें ज्ञानदेवजी ने प्रश्न किया कि आपके मन में क्या विचार है, मै वेद पढ़ सकता हूॅ या नहीं? इस पर पण्डितों ने उन्हें वेद नहीं पढ़ने की बात कही। यह सुनकर ज्ञानदेवजी ने पास की एक भैंसे को देखकर कहा कि वेद तो यह भैंसा भी बिना किसी के पढ़ाये पढ़ सकता है। जब विद्वानों ने इसे असंभव बताया तो ज्ञानदेवजी ने भैंसे को वेदपाठ करने की आज्ञा दी। भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार ज्ञानदेवजी की भक्ति के प्रताप से भैंसे ने भी वेदपाठ शुरू कर दिया। जिसके बाद पण्डितों में भी भक्ति प्राप्त करने की रूचि जाग गयी। उनका अहंकार दूर हो गया। उन्होंने  श्रीज्ञानदेवजी के चरण पकड़ लिये। भक्तों से सरल स्वभाव के साथ ज्ञानदेव हमेशा दीन भाव में रहे।

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