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भक्त कथा: गुप्त भक्त थे श्वपच वाल्मीकि, भगवान श्रीकृष्ण की वजह से उजागर हुई उनकी भक्ति

Bhakt Katha: भगवान श्रीकृष्ण के गुप्त भक्तों में महाभारतकालीन श्वपच वाल्मीकि का नाम प्रमुखता से आता है। इनकी भक्ति को उजागर करने के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें पांडवों के यज्ञ में बुलाया था। उनके भक्ति भाव से द्रौपदी का अहंकार भी दूर हुआ था। आज हम आपको उन्हीं श्वपच वाल्मीकि की कथा बताने जा रहे हैं।

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श्वपच वाल्मीकि की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्वपच वाल्मीकि भगवान श्रीकृष्ण के परम व सरल भक्त थे। वे अपनी भक्ति को कभी प्रगट नहीं करते थे। एक समय पांडव राजा युधिष्ठिर ने बड़ा भारी यज्ञ किया था। जिसकी सफलता को मापने के लिए श्रीकृष्ण ने यज्ञ स्थल पर एक शंख रख दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ के अंत में इस शंख के बजने पर ही यज्ञ सफल माना जाएगा। पर यज्ञ में वेद मंत्रों के साथ आहुतियां, पूर्णाहूति, तर्पण, ब्राह्मणों के भोजन  व दान-दक्षिणा का सारा काम होने पर भी वह शंख नहीं बजा। तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से शंख नहीं बजने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसे किसी रसिक भक्त ने भोजन नहीं किया है, जिसे अपनी भक्ति, ज्ञान व जाति का अहंकार ना हो। यह सुन युधिष्ठिर ने पूछा कि ऐसा कौन भक्त है? तब श्रीकृष्ण ने श्वपच वाल्मीकि का नाम लिया। इसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर ही अर्जुन व भीम को उन्हें लाने के लिए भेजा गया। जब दोनों ने श्वपच वाल्मीकि की कुटिया में जाकर उन्हें यज्ञ में भोजन का निमंत्रण दिया तो पहले तो वे संकोच में पड़ गए। कहने लगे कि वे तो जूठन खाने वाले हैं। उन्हें शाही भोजन के लिए निमंत्रण देना उचित नहीं है। लेकिन, बाद में जब अर्जुन व भीम ने बहुत विनय होकर प्रार्थना की तो सरल हृदय श्वपच वाल्मीकि ने उनका निमंत्रण सकुचाते हुए स्वीकार कर लिया।


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द्रौपदी की भावना बदली
अगले दिन जब श्वपच वाल्मीकि युधिष्ठिर के दर पहुंचे तो द्रौपदी ने पाकशाला में बिठाकर उन्हें अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट पकवान परासे। पर जब श्वपच वाल्मीकि उन्हें खाने लगे तो उन्होंने सभी पकवानों को अपनी थाली में एक साथ मिलाकर खाना शुरू कर दिया। इतने में ही यज्ञ के लिए रखा शंख भी बज उठा। लेकिन, इसी दौरान द्रौपदी के मन में श्वपच वाल्मीकि को लेकर दुर्भाव आ गया। वे मन में सोचने लगी कि ये कितने अनाड़ी हैं जो इतनी मेहनत करके बनाए गए अलग- अलग पकवानों का स्वाद लेने की जगह उन्हें एक साथ मिलाकर खा रहे हैं। द्रौपदी के मन में ये भाव आते ही शंख फिर बजना बंद हो गया। इस पर द्रौपदी का भाव जानकर उनका अहंकार दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने श्वपच वाल्मीकि से ही सारे पकवानों को एक साथ मिलाकर खाने का कारण पूछा। ये सुन श्वपच वाल्मिीकि ने कहा सरल भाव से कहा कि हे भगवन। आप इन पकवानों का  पहले भोग लगा चुके हैं। ऐसे में अब ये पकवान प्रसाद हो गए हैं। पदार्थ बुद्धि से खाने पर तो ये पकवान स्वादिष्ट या बेकार लगेगे, पर प्रसाद की तरह खाने पर ये सब मिलकर भी परम आनंद दे रहे हैं। भक्त श्वपच की ये बात सुनकर द्रौपदी का हृदय भी उनके प्रति श्रद्धा के भाव से भर गया और इसके साथ ही शंख भी जोर से बज उठा। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने श्वपच वाल्मीकि की भक्ति को उजागर किया। 

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