google-site-verification: googleaeb31003b33f7142.html google-site-verification=Xv40uOZ979n4BNmsBw5B2vPl5LCHtrZ-5MILlPJO6Uo google-site-verification=Xv40uOZ979n4BNmsBw5B2vPl5LCHtrZ-5MILlPJO6Uo भक्त कथा: राजपूत शासक से संत बने पीपा ने द्वारिका के समुद्र में लगा दी थी छलांग, श्रीकृष्ण ने साक्षात दिए थे दर्शन

भक्त कथा: राजपूत शासक से संत बने पीपा ने द्वारिका के समुद्र में लगा दी थी छलांग, श्रीकृष्ण ने साक्षात दिए थे दर्शन

                                 

 

 राजर्षि पीपा की गिनती भक्त शिरोमणियों में होती है। ये राजस्थान के झालावाड़ जिले के गागरोन रियासत के चौहान खींची राजपूत वंश के शासक थे। जिन्होंने भगवान की भक्ति में राजपाट त्याग दिया था। समाज में इनके कई चमत्कार भी प्रसिद्ध है। आइए आज संत पीपा के इतिहास, भक्ति व चमत्कारों के बारे में जानते हैं।

भक्त कथा: धन्ना जाट के साथ खाना खाते थे भगवान, बिना बीज बोए खेत में उगता था अनाज

राजर्षि पीपा का इतिहास (History of Rajarshi Pipa


राजर्षि पीपा का जन्म गागरोन में संवत 1390 के आसपास हुआ। इनके पिता का नाम करोध सिंह व मां का नाम शिशोदिनी जगीसरी कुंवर था। इन्होंने विक्रम संवत 1416 में शासक पद ग्रहण किया। पर बाद में प्रसिद्ध स्वामी श्री रामानंदजी के शिष्य बनने पर संवत 1441 में इन्होंने गृह त्याग कर दिया। 12 पत्नियों में से एक पत्नी सीता भी सन्यास लेकर आजीवन इनके साथ ही रही। जीवन के अंतिम वर्षों में वे एक गुफा में रहने लगे। विक्रम संवत 1480 में इन्होंने देह त्याग की।

भक्त कथा: गुप्त भक्त थे श्वपच वाल्मीकि, भगवान श्रीकृष्ण की वजह से उजागर हुई उनकी भक्ति

राजर्षि पीपा की भक्ति व चमत्कार (miracles of Rajarshi Pipa)

1. पीपा जालपा कुल देवी के भक्त थे। शासक बनने के बाद ही इनकी भक्ति बढ़ने लगी।   12 वर्ष कुलदेवी की सेवा के बाद ये ये स्वामी रामानंद के शिष्य हो गए। उन्हीं के साथ द्वारका की यात्रा के दौरान ये भगवान श्रीकृष्ण को पाने की लालसा पत्नी सहित समुद्र में कूद गए। जहां द्वारिकाधीश ने इनको अंगूठी की निशानी दी और 9 दिन बाद ज्ञान के उपदेश सहिहत इन्हें वापस भू तल पर लौटा दिया। इस अंगूठी की स्मृति में आज भी द्वारका में छाप लगाई जाती है। द्वारिका में इनका चमत्कार देख लोगों की भीड़ जुटने लगी तो ये वापस गागरोन आ गए।

2. राजर्षि पीपा के भक्ति भाव में रहने के कारण भाई कल्याण राम ने ही शासन की बागडोर संभाल रखी थी। विक्रम संवत 1435 में गागरोन पर तुर्कों ने आक्रमण कर दिया था। लेकिन, राजर्षि पीपा के वहां रहते गागरोन को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

भक्त कथा: ज्ञानदेवजी के कहने पर भैंसा पढ़ने लगा था वेद पाठ

3. द्वारका की यात्रा के दौरान रास्ते में एक पठान ने राजर्षि पीपा से सीता को छीन लिया। सीता ने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया। इसके बाद भगवान ने पठान को दंड देकर सीता को पीपा के पास पहुंचने का परामर्श दिया।

4. अपनी यात्रा के दौरान उन्हें एक बार जंगल में एक हिंसक शेर मिला। वह सीता को भी  खाने दौड़ा। लेकिन राम नाम स्मरण करते हुए दोनों निर्भय बने रहे। अचानक चमत्कार हुआ और शेर शेरनी सहित पीपा के चरणों में नतमस्तक हो गए।

भक्त कथा: जना बाई के साथ चक्की पीसते थे भगवान, नदी के घाट पर धोए थे कपड़े

5. एक बार राजर्षि पीपा ने एक तेलन से राम-राम जपने को कहा। उसने मना कर दिया तो पीपा ने कहा कि पति के मरने पर सती भी राम-राम करती है, इसलिए तू भी कर। पर इन्कार कर वह घर चली गई। यहां उसने अपना पति मरा हुआ पाया। पति के साथ सती होते समय वह जोर-जोर से राम राम कहने लगी तो पति फिर जिंदा हो गया। इसके बाद तेलन भी पीपा की शिष्य बन गई।

6. अन्य चमत्कार
राजर्षि पीपा के उपयुक्त् चमत्कारों के अलावा घोड़ों का चमत्कार, पैसों का चमत्कार, शाह का चमत्कार, बंजारे का चमत्कार, बैलों का चमत्कार आदि कई चमत्कार प्रसिद्ध है।


राजर्षि पीपा से जुड़े ऐतिहासिक स्थल (Historical places associated with Rajarshi Pipa )

गागरोन में राजर्षि पीपा की गुफा, पीपा जी का मंदिर व विशाल छतरी बनी है। यहां हर साल कार्तिक कृष्ण नवमी को विशाल मेला लगता है। द्वारका से 40 किलोमीटर दक्षिण में पीपा वट स्थित है। द्वारिका के समुद्र से वापस आकर पीपा व सीता इसी वृक्ष के नीचे आकर रुके थे। बनारस में भी पीपा का नरहरी मोहल्ले में पीपा कूप है। टोडा में भी सूरज सेन का बनवाया हुआ पीपा मंदिर है।

Post a Comment

0 Comments